रविवार, 14 जून 2020

जूते और पोथी [कुण्डलिया ]


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✍ शब्दकार©
📙  डॉ. भगवत स्वरूप शुभम'
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जूते     सोहें   मंच      पर,  पोथी खाएँ धूर।
पड़ी    हुईं फुटपाथ पर,बिकने को मजबूर।
बिकने       को मजबूर,भाव रद्दी के  जातीं।
पोथी    गीता आदि ,पड़ी  भूपर  शर्मातीं।।
'शुभम'    बड़ा बदहाल, पुस्तकें किसके बूते।
देखो     वे  खुशहाल,  सजे ए सी में जूते।।

जूते   हैं      शोरूम    में, ग्रंथों  का क्या मोल!
जूते   पाँच   हजार में,पुस्तक बिकतीं तोल।।
पुस्तक बिकतीं तोल,ज्ञान को कौन पूँछता।
फिरते     सौ -सौ चौंर,उपानह मनुज बूझता।।
'शुभम'  ग्रंथ हैं  मौन, श्वान आ- आकर सूते।
नाले     तट पर ग्रंथ ,महक  में चमके  जूते।।

जूते      का ही मोल है ,जूता ही अनमोल।
रद्दी   में  विद्या बिके,  ज्ञान  हो गया  गोल।।
ज्ञान    हो गया गोल, चमक जूते की चमके।
दर्पण    का दे काम , ज्ञान एड़ी में धमके।।
'शुभम'    बुद्धि  में सून,  आदमी कैसे कूँते।
बगुला      जैसा  सूट ,  पाँव   में चमकें जूते।।

जूते    की महिमा बड़ी ,जानें जाननहार ।
नेताजी     के  कर्म से, बनते  वे गलहार।
बनते       वे    गलहार , चुनावी वादे   झूठे।
मारें     भी  दो चार,अगर जनता जी रूठे।।
'शुभम '     ग्रंथ का लेख,न नेता पढ़ते  छूते।
नीतिपरक हों काज,नहीं फिर मिलते जूते।।

जूते  हाई  हील  के ,कमर मट कती चाल।
गिरने    की  चिंता नहीं,हो कैसा भी हाल।।
हो    कैसा     भी हाल,हाथ  में दाबे   पोथी।
मोबाइल में  कान,ज्ञान की गठरी  थोथी।।
'शुभम'   युवांगी एक, स्वेद कण भारी चूते। 
 नटनी    जैसा    हाल,  उचकते नीचे  जूते।।

💐 शुभमस्तु !

13.06.2020◆2.30 अप.

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