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✍ शब्दकार ©
🌟 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वैभव विविध प्रकार का,
ज्योतित विभा प्रकाश।
शक्ति, बुद्धि, ऐश्वर्य को ,
मिले जहाँ विश्वास।।1।।
लाखों लाख करोड़ की ,
चोरी करते चोर।
वे वैभवशाली नहीं,
छीनें धन बरजोर।।2।।
देह - स्वेद अपना बहा,
सैनिक और किसान।
वैभव होते देश के,
बनता देश महान।।3।।
बैंक लुटेरे देश का ,
वैभव लूट विदेश।
छिपे शाह बनकर वहाँ,
भागे देकर क्लेश।।4।।
कवि - उर का वैभव सदा,
सुंदर शब्दाचार।
पंख कल्पना के लगा ,
उड़ता रवि के पार।। 5।।
वैभव कवि का काव्य में,
महके सुहृद सरोज।
नवरस भर लय ताल में,
मधु प्रसाद गुण ओज।।6।।
विभा रहित वैभव नहीं,
धन, ताकत या काव्य।
ग़ज़ल चुराकर और की,
क्या शायर संभाव्य।।7।।
घर के वैभव हैं सदा,
पति , पत्नी, संतान।
मिल जुल कर रहते सभी,
सुखमय रहे वितान।।8।।
वैभव है धन - संपदा,
करता अहं विनाश।
देने से घटता नहीं,
वैभव -दिव्य प्रकाश।।9।।
फल आने पर विटप भी,
झुक जाते हैं आप।
वैभव पा जो तन गया ,
उसको धन अभिशाप।।10।
वैभव मद में चूर हो ,
करता खोटे काम।
'शुभम'अशुभ पथ पर चले,
उसे बचाए राम।।11।।
💐 शुभमस्तु !
08.06.2020 ◆6.30अपराह्न।
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