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✍️ शब्दकार ©
🧘🏻♂️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अपना कचरा औऱ के , दरवाजे पर डाल।
पीछे मुड़ मत देखना,हो परिशुद्ध मुहाल।।
रोपें पौधा एक ही, फोटो खींचें चार।
सुर्खी में हँसते हुए, छपवाएँ अखबार।।
क्षमता से ऊपर करें, जल - दोहन हे मीत।
कल देखा किसने यहाँ, रहना धरा अभीत।।
पौधारोपण के लिए , दें सबको उपदेश।
देशभक्त बन जाइए,पहन बगबगे वेश।।
नित्य मिलावट कीजिए, धनिए में हो लीद।
पैसा ही भगवान है , दीवाली या ईद।।
एक साल में एक दिन,करें देह से योग।
रहे निरोगी देह ये, डटकर भोगें भोग।।
रहिए सदा प्रसन्न ही, जैसे शूकर श्वान।
भाषण भोंकें नित्य ही, तेरा योग प्रमान।।
कथनी - करनी में सदा, रखना ही है भेद।
जो कहना करना नहीं, भले हजारों छेद।।
रटें पहाड़ा योग का, योगी बना न एक।
मालपुआ के भोग में,लगता बुद्धि विवेक।।
उलटासन मुद्रा बना, खींचें चित्र अनेक।
बैठक में लटकाईए, परामर्श यह नेक।।
योग और पर्यावरण ,के ज्ञानी का देश।
जगत -गुरू यों ही नहीं, सीखें सीख सुरेश।।
🪴 शुभमस्तु !
०८ जून २०२२◆९.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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