सोमवार, 13 जून 2022

लात -देव यदि बात न माने 🪷 [ सजल ]


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समांत : इत ।

पदांत:  है।

मात्राभार :16.

मात्रापतन: शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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शठ     से    शठता    सदा  उचित      है।

करनी     रिपु    से    नीति विहित     है।।


काँटे        से       ही      निकले      काँटा।

दुश्मन     होता      पल   में चित        है।।


चपत      पड़ी     है    तव   कपोल    पर।

मारो        अनगिन      इसमें  हित      है।।


घी      न       निकलता    सीधी    अँगुली।

टेढ़ी      करना       ही    समुचित       है।।


लात   -   देव     यदि     बात  न       मानें।

जड़     कर      लात      करें  चिह्नित  है।।


आस्तीन        में         साँप     छिपे    हैं।

करना       ही         उनको   कीलित     है।।


'शुभम्'        शत्रु      हैं आँख    दिखाते।

उसे       फोड़ना      नित    वंदित      है।।


🪴 शुभमस्तु !


१३ जून २०२२ ◆४.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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