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✍️ शब्दकार ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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समय आ गया पार्थ फिर,लो गांडीव उतार।
अरि अनीति पर आ गया करें न नीति विचार
शठ से शठता नीति है,कहते कृष्ण मुरारि,
'धर्मो रक्षति रक्षितः, सह्य नहीं कर वार।
सबक सिखाना चाहिए,जो म्लेच्छ अरि नीच,
लेना ही प्रतिशोध है, करके उचित प्रहार।
कटुता फैले धर्म की,यही लक्ष्य का मूल,
कतर देश से कर रहा,धन को भेज प्रचार।
मानव तन में म्लेच्छ कृमि,रेंग रहे हर ओर,
नाली में मच्छर रहें, प्रजनन में व्यभिचार।
शूल निकलता शूल से,खून माँगता खून,
जो गाली दे गाल से, उसको गोली चार।
आँख तरेरे सामने, अरि तेरा रणधीर!,
आँख निकालें हे 'शुभम्',रखना नहीं उधार।
🪴 शुभमस्तु !
१२ जून २०२२◆ ८.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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