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✍️ शब्दकार ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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टपके
टपका पके
सघन अमराई में
लूटने दौड़े
बालक।
बीता
अर्द्ध आषाढ़
मिटा आतप प्रगाढ़
मेघ घिर
बरसे।
हुई
कोकिला मौन
आम की डाली
झुरमुट में
बैठी।
झरते
बरसे मेघ
नहीं अब नीला
अंबर विशद
पनीला।
पनारे
चल उठे
निशि दिन भर
झर - झर
कर।
लगे
बोलने मोर
मेघ गर्जन सुन
बागों में
नाचते।
चातक
प्रण करता
पिएगा स्वाती जल
जब घन
बरसाए।
घन
गरजे बरसे
चमकी बिजली भी
तृषित नहीं
धरती।
दादुर
लगे उछलने
करते टर टर,
स्वर भरते
मंत्रोच्चारण।
वीरबहूटी
कहाँ गई
पड़ती न दिखाई
पावस ऋतु
आई।
बिना
दाँत के
निपट पोपले बाबा
पिलपिले आम
चूसते।
🪴 शुभमस्तु !
३० जून २०२२◆२.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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