शनिवार, 11 जून 2022

आगे भी जीवन है! 🚣🏻‍♀️ [नवगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🚣🏻‍♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बीत चुका वह भी जीवन था,

आगे भी जीवन है।


एक -एक पल वर्तमान का

बीत रहा क्षण -क्षण में,

ज्यों मुट्ठी से रेत जा रहा

फिसला -सा कण -कण में,

जीवन विशद कहानी,

कहते   आनी - जानी,

मानें  जैसा   मन   है।


शूकरवत नाले में कोई

मतवाला सोया है,

ढोता कोई बोझ शीश पर

कर्मठ नर खोया है,

हार नहीं कुछ मानी,

बड़े -बड़े जन दानी,

जीवन यह कंचन है।


इच्छाओं  के  फूल शाख पर

कभी नहीं मुरझाते,

खिलते जिनके फूल महकते

बनते फल सरसाते,

पथ पर सबको चलना,

दुनिया देख न  जलना,

घंटा घनन -  घनन है।


जड़ को सींच जिंदगी पाए

आएँगे नव पल्लव,

जड़ को ही ठुकरायेगा तो

मिले जगत को बद रव,

बस  चलते  ही   रहना,

सरिता -सा जल बहना,

सी उधड़ी  सीवन  है।


🪴 शुभमस्तु !


११जून २०२२◆१०.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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