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✍️ शब्दकार ©
🚣🏻♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बीत चुका वह भी जीवन था,
आगे भी जीवन है।
एक -एक पल वर्तमान का
बीत रहा क्षण -क्षण में,
ज्यों मुट्ठी से रेत जा रहा
फिसला -सा कण -कण में,
जीवन विशद कहानी,
कहते आनी - जानी,
मानें जैसा मन है।
शूकरवत नाले में कोई
मतवाला सोया है,
ढोता कोई बोझ शीश पर
कर्मठ नर खोया है,
हार नहीं कुछ मानी,
बड़े -बड़े जन दानी,
जीवन यह कंचन है।
इच्छाओं के फूल शाख पर
कभी नहीं मुरझाते,
खिलते जिनके फूल महकते
बनते फल सरसाते,
पथ पर सबको चलना,
दुनिया देख न जलना,
घंटा घनन - घनन है।
जड़ को सींच जिंदगी पाए
आएँगे नव पल्लव,
जड़ को ही ठुकरायेगा तो
मिले जगत को बद रव,
बस चलते ही रहना,
सरिता -सा जल बहना,
सी उधड़ी सीवन है।
🪴 शुभमस्तु !
११जून २०२२◆१०.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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