रविवार, 12 जून 2022

बाहर क्यों अँधियारा है? 📪 [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🐧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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माँ  बाहर  क्यों  अँधियारा है?

लगता मुझे  न   ये  प्यारा है।।


आँखों   से   देता   न दिखाई।

भीतर -  बाहर   जैसे   काई।।

बस दिखता  मंडल  तारा  है।

माँ  बाहर क्यों अँधियारा है?


जब  रात  घनी  हो  जाती है।

दीपक माँ  नित्य जलाती है।।

होता   थोड़ा   उजियारा    है।

माँ  बाहर क्यों  अँधियारा है?


सूरज   दादा   छिप  जाते  हैं।

तब हम भी   सोने   पाते  हैं।।

अँधियारा   रवि   से  हारा है।

माँ बाहर क्यों  अँधियारा  है?


जब गोला  लाल  निकलता है।

अँधियारा काला   टलता  है।।

हटता जग  से  तम  सारा  है।

माँ बाहर क्यों  अँधियारा   है?


जब  चंदा   मामा  आ   जाते।

अपना  प्रकाश   वे  फैलाते।।

ज्यों  नई   रश्मि  की धारा है।

माँ बाहर  क्यों  अँधियारा है?


🪴शुभमस्तु !


१२ जून २०२२◆५.४५

 पतनम मार्तण्डस्य।


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