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✍️ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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श्रम -साधिका
शीश धर ऐंडुर
अधरों में मुस्कान,
श्रम-जल-मुक्ता सिक्त ललाट।
सिर पर घर का
बोझ उठाए,
करने में श्रम
क्यों शरमाए!
गाती घर लोरी,
आँचल में छोरी,
लचपच हिलती है खाट।
चेहरा भर -भर
चू रहा पसीना,
घर के दुख - दर्द
नित्य ही पीना,
जीने की इच्छा,
ले रही परीक्षा,
ईंट- भट्ठे में घर - घाट।
मन स्वच्छ देह
नित ही श्रम से चूर,
थकती न कभी
मन में प्रसन्न भरपूर,
जाने न ऊब,
ज्यों हरी दूब,
देखी पानी - पूरी कब चाट?
लवणीय स्वेद से
होता तन - स्नान,
तजकर चलती गेह
देखती बाहर भव्य विहान!
सदा उर में उत्साह,
न भरती आह,
स्वेद ही निर्धनता की काट।
🪴 शुभमस्तु !
०७ जून २०२२◆८.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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