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✍️ व्यंग्यकार ©
🍓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आवरण' का अपना एक विशेष आकर्षण है।एक विलक्षण सौंदर्य है।कोई चमड़े से ढँका है ,कोई कपड़े से। कोई रंगों से ढँका है,कोई तरंगों से और जिससे सब कुछ ढँका है ;वह दमड़ी है।कुछ भी नहीं बचा जो दमड़ी से ढँका हुआ नहीं हो।बड़े से बड़े पाप, मैं अथवा आप,ठोस ,द्रव या भाप,दमड़ी ही है सबकी बाप।कोई नहीं है जिसकी नाप।इस मृत्युलोक में दमड़ी का ही तो है विचित्र प्रताप।सब कुछ ढँक लेती है दमड़ी,भले ही हो वह नंगी चमड़ी अथवा मक्खी से सनी रबड़ी।सब कुछ दमड़ी के आवरण के नीचे आकर्षक है,सुगंधित है,सम्मोहक है।सर्व स्वीकार्य है,सबके लिए अनिवार्य है।चाहे वह आम हो या खास,झोंपड़ी हो या महल-सा आवास।सबका ही है दमड़ी में विश्वास।एक अबोध नवजात मानव - शिशु भी सादा कागज के टुकड़े को नहीं पकड़ता ; परंतु एक पाँच सौ के नोट को कसकर जकड़ता है।अपनी मुट्ठी में मजबूती से पकड़ता है।यही तो दमड़ी का जादू है ; आदमी संस्कारवश उसका आदी है।
मनुष्य के शरीर के आवरण चमड़ी (त्वचा,खाल)की बात करते हैं ,तो पाते हैं कि ये चमड़ी ही उस आकर्षण का प्रथम सम्मोहक तत्त्व है ,जो किसी दूसरे नर अथवा नारी को अपनी ओर एक चुम्बक की तरह खींच लेता है। कल्पना कीजिए यदि कुछ समय के लिए किसी देह से यदि उस त्वचावरण को हटा दिया जाए तो कुछ क्षण के लिए भी उस देह और देहांगों को देखा भी नहीं जा सकता।फिर उसके साथ किसी स्पर्श,चुम्बन,आलिंगन आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती।उस समय उस मनुष्य के हृदय, यकृत, फेफड़े, गुर्दे,आँतें,आमाशय,मूत्राशय, मलाशय, सिर के ऊपरी भाग में दिमाग, जबड़े ,दाँत, जीभ आदि अंग औऱ उनके विविध उपांग ही दिखाई देंगे।किस व्यक्ति में है साहस कि त्वचा विहीन मानव शरीर के आंतरिक भाग को देख सके। यह त्वचा का सुंदर और सशक्त आवरण ही है , जो अन्य नर - नारियों के लिए सम्मोहक औऱ आकर्षक बन क्या कुछ करने के लिए आहूत कर लेता है।
मानव शरीर के आवरण की चर्चा के अंतर्गत यह बताना भी आवश्यक हो गया है कि प्रकृति प्रदत्त त्वचावरण के ऊपर भी उसे सजाने सँवारने के हजारों उपक्रम किये जाते हैं। युग -युग से किए जा रहे हैं। भले ही प्रकृति मनुष्य को कितना ही सुंदर शरीर, त्वचा, रंग, बनावट, सुडौलता ,कद, काठी दे दे ,किंतु पेड़ की शाखाओं की तरह उसके ऊपर रँग - रोगन ,क्रीम, पाउडर ,महावर, लिपस्टिक, काजल, तेल, परफ़्यूम आदि के आवरण पर आवरण चढ़ाना नहीं भूलता। आधुनिक युग में तो सौंदर्य प्रसाधन केंद्रों में हजारों लाखों खर्च करके आवरण ही तो चढ़ा रहा है। जो सभी अस्थाई ही हैं। स्थाई आवरण त्वचा के ऊपर ये सभी नकली आवरण ठीक वैसे ही हैं, जैसे किसी रजाई,गद्दे का कवर या तकिए के गिलाफ़ हों। प्रकृति औऱ प्राकृतिक में मरते हुए मानव के विश्वास का ही परिणाम है कि वह आवरण पर आवरण चढ़ाए जाने के बावजूद संतुष्ट नहीं है।
मानवीय सभ्यता का तकाज़ा है कि वह सभ्यता के साथ समाज में रहे। इसलिए चमड़े पर कपड़े भी आ गए।रंग -बिरंगे , छोटे -बड़े, ढीले- कसे हुए,मोटे या पारदर्शी (जिनके पहनने अथवा न पहनने का कोई अर्थ भले न हो।) ;पर क्या किया जाए ,फैशन के नाम पर ये आवरण भी लादने ही हैं। देह - दिखाऊ सभ्यता का अपना एक अलग आकर्षण है। तभी तो विवाह- बारातों में कड़कड़ाती भीषण ठंड में भी स्लीवलेस ब्लाउज, स्वेटर, कार्डिगन विहीन देह दर्शन नई सभ्यता का परचम ही तो हैं। इससे कम पर कोई समझौता नहीं करती कोई नारी। भले ही हो जाए , कोई भारी बीमारी।
चलते -चलते बहुत से मानवीय आवरणों के साथ दमड़ी के आवरण की बात भी हो जाए।दमड़ी एक ऐसा विशाल तंबू है ,जिसके नीचे एक दो नहीं , गाँव के गाँव ,नगर के नगर ,महानगर आवृत किये जा सकते हैं। कितना ही बड़ा पाप कर के दमड़ी की शरण में आ जाइये, आपका बाल भी बांका नहीं हो सकता। पुण्य तो प्रदर्शन के लिए ही जन्मे हैं। हाँ, पाप को आवरणों के नीचे ढँकना जरूरी है।उसके लिए पैसे रूपी आवरण का अविष्कार कर ही लिया है।बड़े से बड़ा पाप भी इस तंबू से बाहर अपनी टाँग नहीं निकाल सकता।उसे अपनी सारी टाँगें उसके भीतर ही समेट कर रखनी होंगी।समाज, धर्म ,राजनीति के हजारों लाखों पापों का शरण दाता ये दमड़ी टेंट ही तो है। जिसके नीचे हजारों रँगे सियार, लोमड़,लोमड़ियां, अश्व वेश धारी गदहे पूर्णतः सुरक्षित हैं। अब चोर की दाढ़ी में तिनका तो छिपा हुआ ही रहता है। किंतु यदि चोर कोई स्त्री हो अथवा चोर दाढ़ी विहीन हो , तब क्या ? तब के लिए भी पक्का इंतज़ाम किया हुआ है। तब तिनका उसकी दाढ़ में जरूर मिल ही जाना है।क्योंकि चोर कोई भी हो ,रोटी तो खाता ही होगा।इसलिए दाढ़ उसका अनिवार्य अंग है।
सारांशतः यही कहा जा सकता है कि आदमी आवरण की एक आवश्यक आवश्यकता है। उसके बिना उसका जीवन नहीं,अस्तित्व नहीं। जब चिड़ियों को पंख, बिच्छू को डंक,घोंघे को शंख दिये हैं तो मानव को मनमाने आवरण से ढँकने का भी अधिकार नहीं है? आवरण आदमी की आब है, नक़ाब है, उसकी आभा है ।वह उसके अस्तित्व का अंग है।आवरण से ही तो उसके जीवन में रंग है ,तरंग है। आवरण से ही उसका सत्संग है। आवरण से नेता ,सिपाही, दरोगा, दीवान, सिविलियन सबकी पहचान है। आवरण ही तो उड़ता हुआ निशान है।जो उसे पहचानने का एक साधन है। वही उसकी भक्ति है ,आराधन है।
🪴 शुभमस्तु !
२९ जून २०२२◆६.००पतनम मार्तण्डस्य।
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