बुधवार, 22 जून 2022

टिप -टिप औलाती ⛈️ [ चौपाई ]

 

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✍️  शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्म'

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बरसे   पावस  के   घन प्यारे।

दिखते  नहीं   गगन  में तारे।।

टपक  रहे  हैं  छप्पर , छानी।

बरस  रहा  है  शीतल पानी।।


औलाती  से टिप -टिप झरता। 

वर्षा-जल भूतल  पर भरता।।

गिरती   धार  हाथ से  छूकर।

छिटक  गई है  गीली  भूपर।।


सस्वर    बूँदें   गीत   सुनातीं।

कानों को वे अतिशय भातीं।।

हैं  प्रसन्न    सारे   नर -  नारी।

जल थलचर खग प्रमुदित भारी।


आओ हम  सब  मोद  मनाएँ।

रवि-आतप अब क्या कर पाएँ

बैठे   हम   छप्पर   के   नीचे।

बिछा  खाट निज आँखें मीचे।


छिटक-छिटक कर बूँदें आतीं।

तन मन वसन भिगोकर जातीं।।

'शुभम्'  सुहाती  नम औलाती।

भूरे     घन    पावस  बरसाती।।


🪴शुभमस्तु !


२१ जून २०२२◆११.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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