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✍️ शब्दकार ©
📙 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मानव - जीवन उपन्यास है।
हम सब के नित आस- पास है।।
बहु चित पात्र मिलेंगे पथ में,
बद - सुंदर का सघन न्यास है।
मीत अपेक्षा मत रख सबसे,
जीवन तेरा वृत्त - व्यास है।
साथ कौन होगा आजीवन,
निज तन - मन से सफल आस है।
मात , पिता गुरु संतति दारा,
इन सबसे जीवन - विकास है।
मिल जाएँगे कुछ राहों में,
कुछ बिछड़ेंगे बात खास है।
जटिल कथानक, देश - काल में,
भाषा - शैली का उजास है।
पात्र, चरित, परिवेश, वायु, जल,
आना ही है तुझे रास है।
नायक ' शुभम्' रहेगा तू ही,
तेरी ही तो शुचि सुवास है।
🪴शुभमस्तु !
२६ जून २०२२◆ ७.००पतनम मार्तण्डस्य।
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