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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
कटि तट पर घट रखे एक वामा चली,
देख नवल सौंदर्य चुभा काँटा छली,
थाम लिया सद जल घट झुकी पीड़ा से,
पनघट से इठलाती ब्रज गाँव - गली।
-2-
घट को कटि से तिय अलग रखे भी तो कैसे,
जल छलक न जाए एक बूँद घट से ऐसे,
झुक स्वयं वाम हो काँटा हेर रही वामा,
यों खड़ी विनत हो काँटा खींच रही ऐसे।
-3-
नव गौर गात घट धरे सजल कटि भारी,
पहनी शाटिका सुरंग पद्मिनी नारी,
नटखट काँटा पगतल में छेड़ा ऐसे,
झुक लगी हटाने शूल काम की क्यारी।
-4-
'क्यों आया मेरी राह चुभा पग काँटे!'
तरुणी घट को कटि दबा मौन हो डांटे,
मैं तो जाती थी पनघट से जल भरके,
अब जो आया तो मारूँगी दो साँटे।
-5-
तरुणी का देखा हाव उठाए घट को,
तब लगा पाँव में शूल बिखेरे लट को,
झुक गई उठाए भार वाम हो ऐसे,
घर से निकली वर नारि निकट पनघट को।
🪴शुभमस्तु !
१४ जून २०२२◆ १.००पतनम मार्तण्डस्य।
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