बुधवार, 15 जून 2022

कटि तट पर घट रखे 🪷 [ मुक्तक ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                          -1-

कटि  तट   पर  घट  रखे एक वामा     चली,

देख   नवल     सौंदर्य   चुभा काँटा    छली,

थाम  लिया  सद  जल  घट  झुकी पीड़ा से,

पनघट  से   इठलाती   ब्रज गाँव   -   गली।


                        -2-

घट को कटि से तिय अलग रखे भी तो कैसे,

जल  छलक  न  जाए एक बूँद  घट  से  ऐसे,

झुक  स्वयं  वाम  हो  काँटा हेर   रही   वामा,

यों   खड़ी विनत  हो काँटा खींच  रही   ऐसे।


                         -3-

नव  गौर  गात  घट धरे सजल कटि    भारी,

पहनी       शाटिका      सुरंग  पद्मिनी  नारी,

नटखट    काँटा    पगतल  में छेड़ा      ऐसे,

झुक  लगी   हटाने  शूल काम की     क्यारी।


                           -4-

'क्यों   आया    मेरी   राह   चुभा पग काँटे!'

तरुणी   घट को  कटि  दबा मौन  हो   डांटे,

मैं    तो  जाती   थी पनघट से जल   भरके,

अब    जो  आया   तो  मारूँगी   दो  साँटे।


                          -5-

तरुणी   का   देखा    हाव  उठाए  घट   को,

तब    लगा   पाँव में  शूल  बिखेरे  लट  को,

झुक    गई     उठाए     भार  वाम  हो  ऐसे,

घर से निकली वर नारि निकट  पनघट को।


🪴शुभमस्तु !


१४ जून २०२२◆ १.००पतनम मार्तण्डस्य।

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