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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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गहन कल्पना - निर्मित सारा।
सृजन सृष्टि का हुआ हमारा।।
मन की शक्ति अपार न जाने,
कोई , सागर रत्न हजारा।
अंबर में रवि, सोम, सितारे,
खोज मनुज नभ - गंगा हारा।
अंत नहीं विज्ञान शोध का ,
ललित काव्य में ज्ञान पसारा।
स्वप्न सँजोती नित्य कल्पना,
प्रभु ने जग को यहाँ उतारा।
अद्भुत जीव, जंतु, पशु , पक्षी,
जनित कल्पना रूप उभारा।
'शुभम्' अकथ है गूढ़ कल्पने!
तुमसे हमको सबल सहारा।
🪴 शुभमस्तु !
२७ जून२०२२◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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