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✍️ शब्दकार ©
🥨 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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रे मन ! किसको अपने माने।
खेल सुहाने सपने जाने।।
यहाँ वहाँ हर ओर अपेक्षा,
सब ही तंबू इतने ताने।
पल्लव - दल कब हिलते यों ही,
मारुत झोंके बने बहाने।
काम - बंध बंधित नर - नारी,
चित - पट हैं वे चारों - खाने।
कारण एक धरा , नभ , जल में,
पीछे एक, एक के आने।
कोमल सूत्र जोड़ता जग से,
वरना बिखरे ताने - बाने।
'शुभम्' न यों ही कूके कोकिल,
मोर नाचते प्रिया रिझाने।
🪴 शुभमस्तु !
२५ जून २०२२◆२.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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