शनिवार, 11 जून 2022

गीदड़ के दिन आ गए! 🐺 [ दोहा गीतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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देवासुर   संग्राम   का, युग- युग  अत्याचार।

शांति-हनन करता रहा,असुरों का हर वार।।


देवों   ने    छोड़े    नहीं, धर्म, नीति,  सत्कर्म, 

असुर  समझते   देवदल,  है दुर्बल   लाचार।


पत्थर , ईंटें   फेंक   कर, छेड़ रहे    संग्राम,

आगजनी   विध्वंश  का , नहीं टूटता   तार,


नीति, नियम,कानून की,उड़ा धज्जियाँ मूढ़,

चाह  रहे  वर्चस्व जो,उठा हाथ   हथियार।


शांतिदूत   के  नाम का,उड़ा नित्य  उपहास,

मियाँ  मिट्ठुओं  का तना,तंबू बीच  बजार।


सुर-गण की जानी नहीं, शक्ति उड़ा उपहास,

रक्त -पिपासा बढ़ रही,दिखे न तीर, कटार।


मानवता   उर  से  मिटी, दानवता  का शूल,

नित्य सालता  ही रहा, तृण भर  नहीं उदार।


गीदड़  के दिन आ गए,भाग रहा   उस ओर,

महाकाल आगे  खड़ा,करता नहीं   विचार।


🪴 शुभमस्तु !


११ जून २०२२◆७.३० पतनम मार्तण्डस्य।


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