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✍️ शब्दकार ©
🫘 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कहाँ पवन तुम रहते हो?
बिना दिखे ही बहते हो।।
कहते तुमको प्राण हमारे।
कैसे जीवें बिना तुम्हारे।।
शब्द नहीं तुम कहते हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो ?
पेड़ों की तुम डाल हिलाते।
पंखों की पंखुड़ी घुमाते।।
तुम्हीं आग को दहते हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो ?
आँधी चलती सर -सर चलते।
हरे टिकोरे नीचे गिरते।।
कभी सुमन सँग महके हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो।।
चुनरी कभी उड़ा ले जाते।
छप्पर छानी भी बिखराते।।
नटखट भी तुम लगते हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो ?
होती जब जल की बरसातें।
हहरा कर करते हो घातें।।
अपना रूप बदलते हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो??
गर्मी में लूएँ बन जाते।
लगते गाल थपेड़े ताते।।
'शुभम्' शीत में चहके हो।
कहाँ पवन तुम रहते हो??
🪴 शुभमस्तु !
०२ जून २०२२ ◆६.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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