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✍️ शब्दकार ©
🥭 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
बीता आधा मास यों, उमस भरा आषाढ़।
आए बादल झूमकर,झर-झर झरा प्रगाढ़।।
झर-झर झरा प्रगाढ़, गिरे अंबर से पानी।
प्यासी धरती मौन, पहनती साड़ी धानी।।
'शुभम्' न गरजे मेघ,नहीं है जल घट रीता।
सुखी हुए जन जीव,समय सूखे का बीता।।
-2-
आए घन सुख शांति ले,हर्षित हुए किसान।
ताक रहे थे शून्य में,करते उनका मान।।
करते उनका मान, श्वेत बादल गहराए।
रोक हवा की साँस,खोल बाँहें वे छाए।।
'शुभम्' न आतप शेष,सिंधु से जल भर लाए
रहा न खारी नीर,उतर अवनी पर आए।।
-3-
ऊपर प्यासी दृष्टि से,तकता स्वाती - भक्त।
सारन बैठा शाख पर, निज प्रण में अनुरक्त।
निज प्रण में अनुरक्त,मेघ स्वाती के आएँ।।
गिरे मेघ से बूँद, चंचु में जल ले पाएँ।।
'शुभम्' न पीता नीर,बहे जल गंगा भू पर।
रखता अपनी टेक,ताकता चातक ऊपर।।
-4-
डाली वृक्ष रसाल की,कूक रही दिन- रात।
पिक अब बैठी मौन हो,जब देखी बरसात।।
जब देखी बरसात,मग्न झुरमुट में ऐसी।
जन्मजात हो मूक,साध चुप बैठी कैसी।।
'शुभम्' पपीहा पीउ, नाद की रट मतवाली।
सुनते लेश न कान,नहीं अब गूँजे डाली।।
-5-
टपके टपका डाल से,अमराई की छाँव।
बालक युवा किशोर भी,चले छोड़कर गाँव।
चले छोड़कर गाँव, लूटते जो पा जाएँ।
पीत महकते आम, चूसकर वे सब खाएँ।।
'शुभम्' न जिनके दाँत,पोपले बाबा लपके।
पके पिलपिले आम,बाग में मिलते टपके।।
🪴 शुभमस्तु !
३०जून२०२२◆१.४५
पतनम मार्तण्डस्य।
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