गुरुवार, 30 जून 2022

टपका टपके डाल से🥭🌳 [ कुंडलिया ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🥭 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

                         -1-

बीता आधा मास यों,  उमस भरा आषाढ़।

आए बादल झूमकर,झर-झर झरा प्रगाढ़।।

झर-झर  झरा प्रगाढ़, गिरे अंबर से पानी।

प्यासी  धरती मौन, पहनती साड़ी  धानी।।

'शुभम्' न गरजे मेघ,नहीं है जल घट रीता।

सुखी हुए जन जीव,समय सूखे का बीता।।


                         -2-

आए घन सुख शांति ले,हर्षित हुए  किसान।

ताक  रहे  थे  शून्य  में,करते उनका   मान।।

करते   उनका  मान,   श्वेत बादल  गहराए।

रोक  हवा  की  साँस,खोल बाँहें  वे  छाए।।

'शुभम्' न आतप शेष,सिंधु से जल भर लाए

रहा  न खारी  नीर,उतर अवनी पर  आए।।


                         -3-

ऊपर  प्यासी  दृष्टि से,तकता स्वाती - भक्त।

सारन बैठा शाख पर, निज प्रण में  अनुरक्त।

निज  प्रण में अनुरक्त,मेघ स्वाती  के आएँ।।

गिरे  मेघ   से बूँद, चंचु  में  जल  ले   पाएँ।।

'शुभम्' न पीता नीर,बहे जल गंगा  भू  पर।

रखता अपनी टेक,ताकता चातक  ऊपर।।


                         -4-

डाली वृक्ष  रसाल की,कूक रही  दिन- रात।

पिक अब बैठी मौन हो,जब देखी बरसात।।

जब  देखी  बरसात,मग्न झुरमुट   में  ऐसी।

जन्मजात  हो  मूक,साध  चुप बैठी   कैसी।।

'शुभम्' पपीहा पीउ, नाद की रट   मतवाली।

सुनते लेश न  कान,नहीं अब गूँजे   डाली।।


                         -5-

टपके  टपका  डाल से,अमराई की   छाँव।

बालक युवा किशोर भी,चले छोड़कर गाँव।

चले  छोड़कर  गाँव,  लूटते जो  पा  जाएँ।

पीत  महकते आम, चूसकर वे  सब  खाएँ।।

'शुभम्'  न जिनके दाँत,पोपले बाबा लपके।

पके पिलपिले आम,बाग में मिलते   टपके।।


🪴 शुभमस्तु !


३०जून२०२२◆१.४५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...