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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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यादों के वे दिन आ पाते।
कमल सरोवर में छा जाते।।
माँ मेरी फेरती मथानी,
गप - गप कर लवनी खा जाते।
गर्म दूध गुड़ की ढेली सँग,
जब सोते हम पिता पिलाते।
अधिक न पढ़ना ज्योति घटेगी,
दादी के उपदेश बताते।
बाबा लाए कोट हरा रँग,
पहन जिसे हम हर्ष मनाते।
नीली नेकर शर्ट दूध - सी,
चाचाजी मुझको सिलवाते।
'शुभम्' अकेला बड़ा लड़ैता,
सब घर वाले लाड़ लड़ाते।
🪴शुभमस्तु !
२६ जून २०२२◆४.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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