बुधवार, 22 जून 2022

दो - दो खरहे पाले 🐇 [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🐇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मैंने   दो  -   दो  खरहे   पाले।

आधे     गोरे    आधे   काले।।


घर  भर में   वे   दौड़  लगाते।

दिखते कभी कभी छिप जाते।

चिकने  बाल  सरकने  वाले।

मैंने   दो - दो   खरहे   पाले।।


सुबह  सैर  को मम्मी जातीं।

घास नोंचकर उनको लातीं।।

मैं  कहता  ले  खरहे  खा ले।

मैंने  दो  -  दो  खरहे  पाले।।


कूकर   बिल्ली  से  वे डरते।

दौड़ भागकर छिपते फिरते।।

बंद   किए   कमरे   के ताले।

मैंने  दो -  दो   खरहे   पाले।।


सब्जी  के  छिलके  तरबूजा।

खा   लेते   हैं  वे   खरबूजा।।

खाते   खीरा  बिना   मसाले।

मैंने   दो  -  दो  खरहे  पाले।।


शश की देखभाल हम करते।

नहीं किसी गृहजन से डरते।।

नाम   रखे   हैं    गोरे   काले।

मैंने   दो  -  दो  खरहे  पाले।।


🪴शुभमस्तु !


२१ जून २०२२◆१.४५

पतनम मार्तण्डस्य।

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