रविवार, 26 जून 2022

सुख का नशा निधान! 🍷 [ दोहा गीतिका]


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✍️  शब्दकार ©

🍺 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सभी नशे में चूर हैं,अलग सभी  की शान।

लेता कोई रात  - दिन,कोई मात्र  विहान।।


कोई  मदिरा  लीन है,कोई काम - प्रवीण,

दामोदर  के दास  हैं, लख लाखों  इंसान।


नारी को नर-कामना,निशि दिन रहे अधीर,

नर को  नारी  चाहिए, सारा जगत  प्रमान।


नशा  तँबाकू का करे,गाँजा चरस   अफीम,

हैरोइन  के  हीर  भी, करते नहीं    बयान।


कोई   कोने  में  छिपा, भरता वीर  गिलास,

सँग में है नमकीन भी, महफ़िल में गुणगान।


धीर वीर का नालियाँ, करतीं स्वागत नित्य,

शूकरवत   औंधे  पड़े,  छेड़ें इंग्लिश   तान।


नशे - नशे  का भेद है,अलग स्वाद - संवाद,

'शुभं' बुरा कहना नहीं,सुख का नशा निधान।


🪴 शुभमस्तु !

२६ जून २०२२◆४.१५ पतनम मार्तण्डस्य।



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