रविवार, 19 जून 2022

स्वर्ग का द्वार :पिता 🪷🪷 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '

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प्रथम पता मेरे पिता, पावन मम    पहचान।

उऋण नहीं होना कभी, सागर,शृंग  समान।।

संस्कार शुभतम दिए,जनक 'शुभम्' सुत मूल

भले क्रोध  करते कभी,रहे सदा   अनुकूल।।


कभी न ऊँचे बोल में,बोला पितु के   साथ।

दृष्टि विनत मेरी रही,सदा झुका पद -माथ।।

पितृ- दत्त आदेश का,सदा किया   सम्मान।

वह अनुभव के  ग्रंथ थे,हित मेरे    वरदान।।


अश्रु पिता के नयन से,गिरे न 'शुभम्' समक्ष।

घर भर के आधार वे,गृह- वाहन  के अक्ष।।

जननी के दो चरण में,रहता स्वर्ग - निवास।

पिता द्वार उस स्वर्ग के,मत समझें  ये हास।।


दिया पिता ने प्यार जो, कौन करेगा   और।

नहीं अभावों में जिया,'शुभम्'पिता सिरमौर।

सूरज-से पितु गर्म थे, पर प्रकाश - भंडार।

उनके छिपते ही भरा, जीवन में  अँधियार।।


आज पिता की रश्मियाँ, देतीं सुखद प्रकाश।

ऊर्जा उनके नेह की,भरती'शुभम्' सु-आश।।

पितृ कर्म से कीर्ति का,ध्वज लहरा आकाश।

शक्ति,ज्ञान,सम्मान से,मिला 'शुभम्'मधुप्राश।


जीवन में सब कुछ मिला,मात पिता आशीष

जन्म-जन्म भूलूँ नहीं,'शुभम्'कृतज्ञ मनीष।।


🪴 शुभमस्तु !


१९जून २०२२◆१२.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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