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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '
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प्रथम पता मेरे पिता, पावन मम पहचान।
उऋण नहीं होना कभी, सागर,शृंग समान।।
संस्कार शुभतम दिए,जनक 'शुभम्' सुत मूल
भले क्रोध करते कभी,रहे सदा अनुकूल।।
कभी न ऊँचे बोल में,बोला पितु के साथ।
दृष्टि विनत मेरी रही,सदा झुका पद -माथ।।
पितृ- दत्त आदेश का,सदा किया सम्मान।
वह अनुभव के ग्रंथ थे,हित मेरे वरदान।।
अश्रु पिता के नयन से,गिरे न 'शुभम्' समक्ष।
घर भर के आधार वे,गृह- वाहन के अक्ष।।
जननी के दो चरण में,रहता स्वर्ग - निवास।
पिता द्वार उस स्वर्ग के,मत समझें ये हास।।
दिया पिता ने प्यार जो, कौन करेगा और।
नहीं अभावों में जिया,'शुभम्'पिता सिरमौर।
सूरज-से पितु गर्म थे, पर प्रकाश - भंडार।
उनके छिपते ही भरा, जीवन में अँधियार।।
आज पिता की रश्मियाँ, देतीं सुखद प्रकाश।
ऊर्जा उनके नेह की,भरती'शुभम्' सु-आश।।
पितृ कर्म से कीर्ति का,ध्वज लहरा आकाश।
शक्ति,ज्ञान,सम्मान से,मिला 'शुभम्'मधुप्राश।
जीवन में सब कुछ मिला,मात पिता आशीष
जन्म-जन्म भूलूँ नहीं,'शुभम्'कृतज्ञ मनीष।।
🪴 शुभमस्तु !
१९जून २०२२◆१२.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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