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✍️ शब्दकार ©
📻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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निंदा की खाई
जो जिह्वा ने बनाई,
स्तुति के सेतु से
पट नहीं पाती,
बालू की नींव पर
महल की दीवार
खड़ी नहीं होती।
मजबूत होनी चाहिए
आधार शिला
हर सड़क की,
तभी बन सकते हैं
स्तुतियों के सुदृढ़ सेतु,
वरना बालू
खिसकने ही वाली है,
मानव की दोमुँही जीभ
अपनी बनाई खाइयों से
भवन ध्वस्त करने वाली है।
स्तुतियों के सेतुओं की
निर्माण सामग्री
खोखली न हो,
तो निशंक
पार हुआ जा सकता है,
हिलता हुआ हर सेतु
कभी भी भूमिसात
होकर स्व अस्तित्व पर
प्रश्न वाची चिह्न
लगा सकता है!
स्तुति के सेतु का
भरोसा भी क्या है?
अब सेतु- बंध नहीं
सेतु - भंग हो रहे हैं,
इंसान अपने को
मिटाने के लिए
नेत्र - अंध हो रहे हैं,
खाइयाँ ही खाइयाँ,
सद्भाव की परछाइयाँ,
मन के सरोवर में
मात्र काली काइयाँ,
भविष्य में अँधेरा है,
आदमियों का
गाँव शहर नहीं,
बेतरतीब जंगल का
बसेरा है।
दूर होता जा रहा
आदमी आदमियत से,
स्तुतियों के सेतु
बनाएगा कौन,
खोदी जा रहीं हैं खाइयाँ,
भविष्य को अब
सुनहरा 'शुभम'
बनाएगा कौन ?
हाथों में लिए कुल्हाड़ी
अपने ही पैरों को
काट रहा है,
अपने अस्तित्व के
चिह्न तक मिटाता
जा रहा है।
🪴 शुभमस्तु !
३० जून २०२२◆ ७.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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