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✍️ शब्दकार ©
⚱️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चुपता बकता भाषण करता,
नेता चिकना एक घड़ा है।
बचपन का शैतान
जवानी का घोड़ा बिगड़ैला,
उठाधरी उस्ताद
गली का मजनूँ छैला,
अगणित 'गुण' की खान,
सैकड़ों में होती पहचान,
गलत या सही ,अड़ा है।
मीलों सच से दूर
चाल विपरीत अजूबा,
नहीं इकाई एक
स्वयं को कहता सूबा,
कहें न उसको श्वान,
चाहता सर्वाधिक सम्मान,
नेता सचमुच बहुत बड़ा है।
कलयुग का भगवान
दरस क्यों देगा भाई!
जिस कुम्हार ने गढ़ा
उसी से हवा हवाई,
सभी माटी ठुकराई,
कोई हों लोग - लुगाई,
रुतबा जो बढ़ा - चढ़ा है।
वंश जाति को दूध
छुपा चुसनी से लाए,
झोली भर - भर रेवड़ियाँ
भरपूर लुटाए,
चीखें चिल्लाएँ लोग,
चाहिए उनको भोग,
उछलता ज्यों बछड़ा है।
🪴शुभमस्तु !
०५ जून २०२२◆ ५.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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