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समांत : आरी।
पदांत: है।
मात्राभार: 16.
मात्रा पतन: शून्य।
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दृढ़ आचारवती नारी है।
नर से सदा रही भारी है।।
देती सदाचरण संतति को,
नारी हितकर सुखकारी है।
कहें न अबला अब नारी को,
घर - घर में वह अवतारी है।
पूरक जग में युगल परस्पर,
संतति की आभा सारी है।
एक हाथ से बजे न ताली,
दो करतल की ध्वनि जारी है।
मिलन रात का दिन से होता,
मधुर चंद्रिका प्रतिहारी है।
'शुभम्' विनाशक अहम सभी का,
युगल जीव का आचारी है।
🪴 शुभमस्तु !
२७ जून२०२२◆६.३०
आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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