गुरुवार, 23 जून 2022

तड़पे एक बीजुरी नभ में ⚡ [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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तड़पे   एक   बीजुरी  नभ  में,

सौ -  सौ   बीच     हिए   मेरे।

सावन  भादों  के  घन   उमड़े,

बीती    अवधि  न   पी   हेरे।।


मन  की  बातें   मन   में   मेरे,

किससे  कहूँ    कहाँ    जाऊँ।

अंतरंग   है     कौन    सहेली,

जिससे  मन की  कह  पाऊँ।।

करती हैं  परिहास  पड़ोसिन,

रहतीं    सुबह  - शाम    घेरे।

तड़पे  एक   बीजुरी   नभ  में,

सौ  -  सौ   बीच   हिए   मेरे।।


गरजें   जब  बादल  अंबर  में,

थर - थर  काँपे  हिया  सजन।

सौतन   कौन   बनी   है  मेरी,

मैं  बैठी  क्या   करूँ भजन??

सात  वचन  देकर   हे प्रीतम,

सात     लिए     तुमने    फेरे।

तड़पे   एक  बीजुरी  नभ  में,

सौ -  सौ   बीच    हिए   मेरे।।


'उर  में  सजा  रखूँगा सजनी,'

वादे     किए    हजारों    तुम।

मैंने  क्या   अपराध   किए  हैं,

जिसकी सजा मिली हरदम।।

एकाकी  दिन -  रात  काटती,

धर्म -  संकटों        के     घेरे।

तड़पे   एक   बीजुरी  नभ  में,

सौ - सौ   बीच     हिए   मेरे।।


प्यासी  धरती   तृप्त   हो गई,

हरे  - हरे     अँखुए      आए।

पावस   के   घन बरस रहे हैं,

प्यास  न  सजन बुझा  पाए।।

अमराई    में   झूलें   सखियाँ,

कहतीं     कहाँ    पिया   तेरे।

तड़पे  एक   बीजुरी   नभ में,

सौ -   सौ   बीच  हिए   मेरे।।


भीगी चुनरी- चोली सखि की,

देख    हिए   में   आग    लगे।

बड़भागिनि वे पिय की प्यारी,

सबके   ही   शुभ भाग जगे।।

'शुभम्'अभगिनि  हूँ  मैं कैसी,

कोल्हू     बिना    गए     पेरे।

तड़पे  एक बीजुरी    नभ  में,

सौ -  सौ   बीच   हिए    मेरे।।


🪴 शुभमस्तु !


२३ जून २०२२◆१०.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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