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✍️ शब्दकार ©
🐑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नहीं करें भेड़ों से यारी।
चलें चाल अपनी हम सारी।।
सोचे - समझे बिना न चलतीं,
भेड़ - चाल है सबसे न्यारी।
देखो एक, एक के पीछे,
चली जा रहीं पंक्ति सँवारी।
गर्दन नीचे झुकी सभी की,
लगती चाल बड़ी ही प्यारी।
एक कूप में यदि गिरती है,
गिरतीं सब ही बारी - बारी।
सीखें उठा तान कर ग्रीवा,
चलने की तब हो तैयारी।
भेड़ नहीं बनना मानव को,
बुद्धिमान हों सब नर - नारी।
' शुभम्' आचरण मानव जैसा,
करें सभी , मत मेष बिचारी।
🪴 शुभमस्तु !
२७ जून २०२२◆ १०.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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