11 जुलाई ,विश्व जनसंख्या दिवस पर:
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कोई कैसे कह सके ,करें जन्म दर न्यून।
जनसंख्या -विस्फोट से,झुलसा हर्ष -प्रसून।।
चिंता बढ़ी विकास की,करते नित्य प्रयास।
बढ़ते बच्चे जा रहे,तनिक नहीं आभास।।
जल भोजन आपूर्ति के,संसाधन का लाभ।
सुविधा से मिलना नहीं, कैसे जीएँ गाभ।।
असन वसन शिक्षा नहीं,नहीं विरजआवास।
जन की संख्या क्यों बढ़े,दूभर हो जब श्वास।
सब ही जीना चाहते, बढ़ते नित्य अभाव।
ऊपर वाला दे रहा,उत्पादन का चाव।।
ऊर्जा ईंधन की सदा,अपनी सीमा एक।
स्वयं नियंत्रित जन करें,देख मीत सविवेक।।
प्रकृति संतुलित क्यों रहे,नहीं समझता मूढ़।
बाढ़ ,वृष्टि, भूकंप के,हैं रहस्य अति गूढ़।।
जीवन -स्तर श्रेष्ठ हो,सब जन हों सानंद।
पढ़ें -लिखें आगे बढ़ें,विकसे मुख -अरविंद।।
नियम बनाए आदमी, किंतु नहीं पाबंद।
चार नारि नर एक ही,घेर पड़ा स्वच्छन्द।।
न्याय प्रकृति का मानना, तुझे पड़ेगा मीत।
हो मानव की हार ही,वह जाएगी जीत।।
'शुभम्' सँभल जा तू अभी,
मानवता के हेत।
बूँद नहीं जल की मिले,
फाँकेगा क्या रेत ??
🪴 शुभमस्तु !
१०.०७.२०२२◆११.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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