सोमवार, 11 जुलाई 2022

लगें सुहाने ढोल दूर के 🪘 [ सजल ]

 

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समांत:आस।

पदांत :का।

मात्रा भार:16.

मात्रा पतन :शून्य।

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✍️शब्दकार ©

🪘 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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छा  लेते   घर   मनुज   घास का।

वही  महल है  सुख -निवास का।।


हो  जाते  जब    बंद    सभी पथ,

उचित  वही  जो  दिखे आस का।


भरे   पेट       वालों      को   सूझे,

साधन      कोई    रंग - रास  का।


मरती   नहीं     एक    भी  माखी,

मिला   बहाना   उन्हें    हास का।


लगें    सुहाने      ढोल    दूर   के,

नहीं    सुहाता     ढोल  पास का।


देती    स्वाद       घास     की रोटी,

विपदा  में   सुख   मिले श्वास का।


'शुभम्'  देख   उसकी    वह चुपड़ी,

लालच  मत   कर  तू  विलास का।


🪴शुभमस्तु !


११.०७.२०२२◆१.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।[रात्रि]


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