छंद विधान:
1.रगण जगण रगण जगण
212 121 212 121
रगण +लघु
212 1 = 16 वर्ण
2.चार चरण समतुकांत।
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
मेघ सावनी घिरे गिरा सुहावना सु-नीर।
खेत - खेत बाग धाम तेज था उड़ा समीर।।
नालियाँ भरी चलीं सवेग शैलजा अधीर।
झूमते किसान देख नाचता रहा कबीर।।
-2-
सेज त्याग जाग के चलीं सु- नारियाँ अनेक।
आज सोमवार है शिवार्चना बनी सु- टेक।।
धार देह पे सुरंग साड़ियाँ नई हरेक।
गीत गा रहीं सभी सुमाधुरी उमंग नेक।।
-3-
बात रात की गई सुभोर सूर है समीप।
अंधकार को नकार प्यार का जला सु दीप।।
फूल की कली खिली सुगंध बाँटती अभीत।
झूमते समूह बाँध चंचरीक साध प्रीत।।
-4-
साधना सुपंथ है सुकाव्य कातना महीन।
भानु का प्रकाश है प्रसार फैलता नवीन।।
हीन भाव से भरा न हो सका सुधी प्रवीन।
मातु शारदा करें कृपा बने सकाम दीन।।
-5-
सार - सार चाहता न द्वार में किया प्रवेश।
देह ढोंग साधता सु धारता सुरंग वेश।।
देश का विचार सोच में न आ सका विशेष।
खाल ओढ़ शेर की बना रहा सदा कु-मेष।।
🪴शुभमस्तु !
२८.०७.२०२२◆ ३.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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