शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

रंग - तरंग चंचला ! 🌈 [ छंद :चंचला ]

  

छंद विधान:

1.रगण जगण रगण जगण

212    121   212  121

रगण  +लघु 

212     1  = 16 वर्ण

2.चार चरण समतुकांत।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                       -1-   

मेघ  सावनी   घिरे  गिरा सुहावना   सु-नीर।     

खेत - खेत  बाग धाम तेज था उड़ा समीर।।

नालियाँ  भरी  चलीं  सवेग शैलजा   अधीर।

झूमते   किसान  देख  नाचता रहा   कबीर।।


                         -2-

सेज त्याग जाग के चलीं सु- नारियाँ अनेक।

आज  सोमवार है शिवार्चना बनी सु- टेक।।

धार   देह   पे    सुरंग  साड़ियाँ नई    हरेक।

गीत  गा   रहीं  सभी  सुमाधुरी उमंग  नेक।।


                         -3-

बात  रात  की  गई  सुभोर सूर   है  समीप।

अंधकार  को नकार प्यार का जला सु दीप।।

फूल की कली  खिली सुगंध बाँटती अभीत।

झूमते  समूह   बाँध   चंचरीक साध   प्रीत।।


                         -4-

साधना  सुपंथ  है  सुकाव्य कातना  महीन।

भानु  का  प्रकाश  है प्रसार फैलता  नवीन।।

हीन  भाव से भरा न हो सका सुधी  प्रवीन।

मातु  शारदा  करें  कृपा  बने सकाम  दीन।।


                         -5-

सार - सार  चाहता न द्वार में किया  प्रवेश।

देह  ढोंग  साधता  सु  धारता सुरंग  वेश।।

देश का विचार सोच में न आ सका विशेष।

खाल ओढ़ शेर की बना रहा सदा कु-मेष।।


🪴शुभमस्तु !


२८.०७.२०२२◆ ३.०० पतनम मार्तण्डस्य।

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