शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

पावस सजल बहार 🌈 [ दोहा ]

 

[पावस,पपीहा,मेघ,हरियाली,घटा]

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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         🪦 सब में एक 🪦

पावस पावन प्रेम की,प्रिय ऋतु का उपहार।

धरती, नारी  के   लिए, बहती प्रेमिल  धार।।

कुहू- कुहू  कोकिल  करे,सारन स्वाती  नीर।

पावस में  गुंजारते,तनिक नहीं   उर  धीर।।


स्वाति -बिंदु का त्याग कर, पिए न गंगा नीर।

पपीहा प्रण के हेतु ही,सहे हृदय   में  पीर।।

पुष्ट पपीहा भक्ति का, ख्यात जगत में नाम।

मानव खग से सीख ले,होगा यश अभिराम।।


मेघ- गर्जना  जब  सुनी, हर्षित  नाचे  मोर।

मेहो - मेहो   गा रहे,कानों  को प्रिय    शोर।।

विरहिनअति व्याकुल हुई, सुनी मेघ की रोर।

तड़ित चमकती शून्य में,हुई नहीं थी  भोर।।


रिमझिम बरसे वारिधर, हरियाली चहुँ ओर

साड़ी  धानी   धारती, धरती मौन   सुभोर।।

हरियाली-तीजें मना, रहीं भगिनि माँ नारि।

अमराई  में  झूलतीं,  पावस की   अनुहारि।।


घटा साँवली  देखकर, बगुले  बना  कतार।

नभ में  उड़ते  जा रहे,कर संवाद   विहार।।

घटा देख हलवाह के,मन में अति उल्लास।

युगल नयन हर्षित हुए,सुषमा का गृहवास।।


        🪦 एक में सब 🪦


मेघ -घटा नभ  में  उठी,

                        पावस  का   उपहार।

हरियाली    छाई    नई,

                         पपिहा करे   पुकार।।


🪴शुभमस्तु !


१९.०७.२०२२◆११.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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