गुरुवार, 14 जुलाई 2022

ओलम से आलम मिला 🪷 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ★

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गुरु के विशद गुरुत्व का,अतुलनीय है मोल।

शत - शत वंदन मैं करूँ, बिना तराजू तोल।।

पल में तम  को दूर  कर,देते नवल   प्रकाश।

गुरु-महिमा कैसे कहूँ, दाता जीवन -  प्राश।।


पहली गुरु जननी सदा,जनक द्वितीय प्रकाश

नभ सम रूप विराट है,जीवन का  विश्वास।।

जननी  गुरु की कुक्षि ने,भू पर दिया  उतार।

लिया अंक में  नेह से,जीव मनुज   उपहार।।


उठ-गिर भू के अंक में,चलन सीख नर जीव।

आजीवन अभार हो,गुरु भू माँ  शुभ  नीव।।

गुरु- कर   से गह लेखनी,सीखे अक्षर  चार।

शब्द वाक्य का क्रम चला,जीवन का उपहार


गुरु - पद का स्पर्श  कर,लेता दुआ   अपार।

धन्य-धन्य जीवन हुआ,आजीवन  आभार।।

ओलम से आलम मिला,बदल गया संसार।

गुरु ने अपने चाक पर,दिया 'शुभम्'उपहार।।


गुण, वय में जो हैं  बड़े,वे सब गुरु  के रूप।

भले  अकिंचन मैं 'शुभम्',भले देश का भूप।।

नन्हीं एक पिपीलिका,है गुरु का  सत  रूप।

देती प्रेरक शक्ति जो, गिरे न नर  भव-कूप।।


मात, पिता ,गुरु  का  करे,

                        यदि   मानव अपमान।

वह  निकृष्ट  नर  जीव  है,

                           बहु  पापों की  खान।।


🪴शुभमस्तु !


१४.०७.२०२२◆ ८.४० आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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