मंगलवार, 26 जुलाई 2022

पड़ते नहीं बाग में झूले 🌳 [ बालगीत ]

 291/2022

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पड़ते    नहीं   बाग   में  झूले।

क्यों हम   खेल  पुराने भूले।।


लोग  नहीं  अब  पेड़  लगाते।

लगे  पेड़  को  काट  गिराते।।

धूल   भरे   उठ    रहे   बगूले।

पड़ते  नहीं  बाग    में  झूले।।


पेड़ न  हों वर्षा  क्यों   होगी ?

बने   रहेंगे   हम  सब  रोगी।।

खट- खट करते  यहाँ वसूले।

पड़ते  नहीं   बाग   में  झूले।।


पौध  लगा  फोटू   खिंचवाते।

नहीं  देखने भी  फिर  जाते।।

वर्षा   में   उठते    न   बबूले।

पड़ते  नहीं  बाग   में   झूले।।


भूलीं    बहनें   गीत   मल्हारें।

मोबाइल   की   सदा  बहारें।।

कहतीं  पिरा   रहे   हैं   कूल्हे।

पड़ते  नहीं   बाग  में   झूले।।


झूला   हमें   निरोग   बनाता।

कमर,हाथ,पग खूब चलाता।।

बनें   अन्यथा   लँगड़े - लूले।

पड़ते  नहीं   बाग  में   झूले।।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०७.२०२२◆७.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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