शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

सावन आया भाया 🌳 [ छंद:माहिया /टप्पा ]

 

छंद विधान:

१.तीन पंक्ति का मात्रिक व  लय प्रधान गेय छंद।

२.प्रथम ,द्वितीय व तृतीय पंक्ति में क्रमशः १२,१० एवं १२ मात्राएँ।

३.मिसरे के अंत में गुरु  अनिवार्य।

४.पहला और तीसरा चरण तुकांत।

५.तीनों चरणों का आदि व अंत गुरु से।

६.रगण 212 अमान्य।

सगण 112 एवं भगण 211 मान्य।

७. पंक्ति 1 एवं 3 में कल बाँट में 06 द्विकल(२+२+२+२+२+२)

तथा पंक्ति 2 में पाँच द्विकल हों।

८.एक गुरु( 2  )को दो लघु ( 1 1 )में तोड़ा जा सकता है।

९.प्रेमी-प्रेमिका की नोंक - झोंक के साथ साथ अब अन्य विषय भी मान्य।

■★■★■★■★■★■★■★■★

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■★■★■★■★■★■★■★■★


घास -   हरी   हरियाली 

भोर सुहानी है

चहक  चिड़ी मतवाली।1।


घन गरज -  गरज   छाए

चमके बिजली नभ

अपनी  आँख   दिखाए।2।


गूँज     रही   अमराई

कोयलिया बोले

प्रीतम की सुधि आई।3।


पपिहा  प्यासे  -  प्यासे 

स्वाति - बिंदु - आशा

तकते    गगन   उपासे।4।


मौन  जवासा वन में

झूमी  हरियाली

सूखे  तरु  निर्जन  में।5।


सावन   आया  भाया

मन टटोलती सखि

तेरा  साजन  आया?6।


वादा   नहीं   निभाया 

साजन तुम  झूठे 

मीठी   बात  लुभाया।7।


सूनी    है    अमराई

झूले  नहीं कहीं

मन की  पींग सताई।8।


महके  पीले  -   पीले 

ये  रसभरे  आम

शहदी      गदरीले  ।9।


अब तो  मत  तरसाओ

मम नैना तरसे

घर पर आ सरसाओ।10।


🪴 शुभमस्तु !


०८.०७.२०२२◆५.१५

पतनम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...