[कलगी,अंकुर,पत्ती, शाखा ,फल ]
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🌲 सब में एक 🌲
कलगी लगती नाचने, बहता सजल समीर।
तन-मन कवि का झूमता,होता शुभं सुधीर।
कुशल कलापी-शीश पर,कलगी करे किलोल
नर्तन में इत -उत फिरे, नहीं उमड़ते बोल।।
पावस में बूँदें झड़ीं, रही न धरा उदास।
अंकुर फूटे घास के,महकी सजल सुवास।।
देख हरित अंकुर नए,प्रमुदित हुए किसान।
उर में उगती आस का,होता 'शुभम्' विहान।
पत्ती पीपल -पेड़ की,थिर न रहे पल एक।
प्राणवायु देती सदा,हितकारी शुचि टेक।।
पत्ती- पत्ती में पके, पादप का आहार।
हरी रसोई सोहती, धरती महा प्रभार।।
मूल,तना,शाखा सभी, पाँच अंग दल फूल।
सबका अपना धर्म है,'शुभम्' न जाना भूल।।
शाखा से शाखा उगे,बहु शाखी हो गाछ।
सदा फूल ,फल दे वही,मीत न देना पाछ।।
जीवन का फल कर्म से,भरे हजारों बीज।
जैसा पेड़ उगाइये, वैसा ही फल चीज।।
क्यों फल की इच्छा करे,पाता स्वयं सहेज।
सत्कर्मों में रत रहे,बँधे न यम की लेज।।
🌳 एक में सब 🌳
शाखा, फल, पत्ती सभी,
अंकुर , कलगी मीत।
'शुभम्' गाछ के अंग हैं,
झेलें आतप शीत।।
*पाछ=घाव।
*लेज= रज्जू।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०७.२०२२◆११.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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