बुधवार, 27 जुलाई 2022

गाछ :प्रकृति उपहार 🌳 [ दोहा ]

  

[कलगी,अंकुर,पत्ती, शाखा ,फल ]

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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       🌲 सब में एक 🌲

कलगी लगती नाचने, बहता  सजल समीर।

तन-मन कवि का झूमता,होता शुभं सुधीर।

कुशल कलापी-शीश पर,कलगी करे किलोल

नर्तन में  इत -उत फिरे, नहीं उमड़ते  बोल।।


पावस  में   बूँदें  झड़ीं, रही  न धरा   उदास।

अंकुर फूटे घास के,महकी सजल  सुवास।।

देख हरित अंकुर नए,प्रमुदित हुए किसान।

उर में उगती आस का,होता 'शुभम्' विहान।


पत्ती पीपल -पेड़ की,थिर न रहे पल  एक।

प्राणवायु  देती सदा,हितकारी शुचि  टेक।।

पत्ती- पत्ती   में  पके, पादप   का  आहार।

हरी   रसोई   सोहती,  धरती महा    प्रभार।।


मूल,तना,शाखा सभी, पाँच अंग दल फूल।

सबका अपना धर्म है,'शुभम्' न जाना भूल।।

शाखा से शाखा उगे,बहु शाखी   हो  गाछ।

सदा फूल ,फल  दे वही,मीत न  देना  पाछ।।


जीवन   का फल कर्म से,भरे हजारों  बीज।

जैसा  पेड़  उगाइये, वैसा  ही फल    चीज।।

क्यों फल की इच्छा करे,पाता स्वयं सहेज।

सत्कर्मों  में रत  रहे,बँधे न यम  की  लेज।।


       🌳 एक में सब 🌳

शाखा, फल, पत्ती सभी,

                         अंकुर , कलगी मीत।

'शुभम्'    गाछ    के  अंग हैं,

                           झेलें    आतप   शीत।।


*पाछ=घाव।

*लेज= रज्जू।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०७.२०२२◆११.३० 

पतनम मार्तण्डस्य।

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