रविवार, 31 जुलाई 2022

सावन की घनघोर घटाएँ 🌈 [ गीतिका ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सावन        की      घनघोर   घटाएँ।

रह - रह   कर  बहु      रोर  मचाएँ।।


तड़ -तड़,  तड़- तड़  तड़के बिजली,

धरती    के      हर      छोर   कँपाएँ।


यौवन     छाया     है     नदियों  पर,

हर - हर     धर - धर    शोर  उठाएँ।


पंख      भीगते     हैं     चिड़ियों   के,

स्वयं        भिगोने      मोर   न  जाएँ।


भीग    गया    तन- मन    भीतर   तक,

अंग   -  पीर        हर      पोर  जगाएँ।


साजन       नहीं     तिया   के  सँग   में,

विरहन         को       कमजोर   बनाएँ।


रात      अँधेरी      में     शापित      हैं,

चकवा   -    चकवी      भोर  मिलाएँ।


🪴 शुभमस्तु !


३१.०७.२०२२◆३.३० पतन म मार्तण्डस्य।

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