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✍️ शब्दकार ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सावन की घनघोर घटाएँ।
रह - रह कर बहु रोर मचाएँ।।
तड़ -तड़, तड़- तड़ तड़के बिजली,
धरती के हर छोर कँपाएँ।
यौवन छाया है नदियों पर,
हर - हर धर - धर शोर उठाएँ।
पंख भीगते हैं चिड़ियों के,
स्वयं भिगोने मोर न जाएँ।
भीग गया तन- मन भीतर तक,
अंग - पीर हर पोर जगाएँ।
साजन नहीं तिया के सँग में,
विरहन को कमजोर बनाएँ।
रात अँधेरी में शापित हैं,
चकवा - चकवी भोर मिलाएँ।
🪴 शुभमस्तु !
३१.०७.२०२२◆३.३० पतन म मार्तण्डस्य।
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