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समांत: आन।
पदांत: चाहिए।
मात्राभार :16.
मात्रापतन: शून्य।
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✍️शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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हर मानव को मान चाहिए।
जगती में पहचान चाहिए।।
कर्म नहीं करना नर चाहे,
फिर भी ऊँची शान चाहिए।
जीभ उगलती है चिनगारी,
जलवाने को छान चाहिए।
आग देख घी लेकर दौड़ें,
अंधे भक्त महान चाहिए।
शब्द नहीं निकले वाणी से,
सुन लें फिर भी कान चाहिए।
पीटें ढोल प्रशंसक सारे,
स्वर की ऊँची तान चाहिए।
'शुभम्' न कोई अति विशेष है,
कर्मों का वरदान चाहिए।
🪴 शुभमस्तु!
०३.०७.२०२२◆१०.१५
पतनम मार्तण्डस्य।
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