रविवार, 17 जुलाई 2022

छोड़े बिंदी,तिलक ,जनेऊ 🔴 [ गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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भूल     गया      निज     धर्म पताका।

बनता     विधि      का    मर्म सनाका।।


छोड़े         बिंदी,        तिलक,  जनेऊ,

त्याग     दिया     सत     कर्म  अवाका।


हिंदी           हिंदुस्तान       कहाँ      है,

छिपी    हुई     है      शर्म     सु  - राका।


माँ      से         भी     ऊपर     है  मौसी,

उजला         चर्म         धारता   काका।


लघुकाटों            में        लगा   निरंतर ,

रुचता     बिंदु    न    नर्म    सुधा   का।


नारी          वसन          उतार  नाचती,

जिला    रहा       है       वर्म    हवा का।


'शुभम्'      देश        का    त्राता   ईश्वर,

शेष     नहीं    है       कर्म   दवा    का।


सनाका=ब्रह्मा के एक पुत्र का नाम।

अवाका =मौन।

सु-राका =सुंदर चंद्रमा।

वर्म= कवच।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०७.२०२२◆६.३०

 पतनम मार्तण्डस्य।


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