रविवार, 3 जुलाई 2022

बुरी न हो यदि सास 🏕️ [ दोहा गीतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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दो कपोल बत्तीस द्विज,का सुदृढ़  आवास।

अस्थिहीन रसना रहे, करती जगत उजास।।


युगल अधर की ओट में,युगल रदन   दीवार,

पीछे  से  शर   मारती,  गिरा चटुल उपहास।


रसना  से  झरते कभी,सद पाटल  के  फूल,

कभी कलह-विष घोलती,घर में भरती त्रास।


रसिका  से  ही  नाक है,रसना से  यमलोक,

जो  इच्छा   हो  लीजिए, सदा तुम्हारे  पास।


रसना के कारण मिले, सादर सद   गलहार,

जूती  पड़े  कपाल  पर, आए किसको रास?


पांचाली  की गर्विणी,   गिरा गिरी ज्यों शैल,

रक्त बहा कुरुक्षेत्र में,उचित न था  ये  हास।


षटरस भाते जीभ  को, मीठा तीक्ष्ण कषाय,

हर रँग में  मदकामिनी,प्रिय है बद  वातास।


त्रेता द्वापर  ही  नहीं,कलयुग में   भी   रार,

कैकेयी की जीभ ने, दिया राम  -  वनवास।।


'शुभम्' नियंत्रण जीभ पर,करना ही है मीत,

बहू चाहती प्यार ही,बुरी न हो यदि  सास।।


🪴शुभमस्तु !


०३.०७.२०२२◆८.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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