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✍️ शब्दकार ©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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तेल लगाना बहुत जरूरी।
घटती उससे तन की दूरी।।
चिकनाई से गति बढ़ती है,
नहीं समझना ये मजबूरी।
तेल घटाता घर्षण भारी,
इच्छा रहती नहीं अधूरी।
अवसर मिले तेल मालिश का,
करना उर की चाहत पूरी।
मर्दन में जो भी शरमाया,
चलती उस ग्रीवा पर छूरी।
मर्दक पहनें रेशम तन पर,
निंदक धारें फ़टी फतूरी।
मेवा - मिश्री मर्दक चाभें,
दूर रहें वे फाँकें धूरी।
'शुभम्' पात्र मर्दन का खोजें,
मिले ब्याज सँग पूरी मूरी।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०७.२०२२◆१.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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