मंगलवार, 26 जुलाई 2022

साड़ी हरी घास की ☘️ [ बालगीत ]

 294/2022

   

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✍️शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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साड़ी  हरी  घास  की  प्यारी।

पहन  धरा लगती   मनहारी।।


वर्षा  की ऋतु  जब  से  आई।

चली  हवा  पछुआ  पुरवाई।।

बरसे  बादल   गिरी   फुहारी।

साड़ी  हरी घास  की  प्यारी।।


कोमल घास मखमली लगती।

आँखों  में शीतलता  सजती।।

जेठ  मास  की  तपन उजारी।

साड़ी  हरी  घास  की प्यारी।।


वन में हिरन,शशक पशु खाते।

मन ही मन  में   खूब  सिहाते।।

गाय, भैंस  को  भी  प्रिय भारी।

साड़ी  हरी   घास  की  प्यारी।।


छील   मेंड़   घड़ियारे   लाते।

हरे -हरे तृण गृह -पशु  खाते।।

पड़िया  की  प्रसन्न   महतारी।

साड़ी   हरी  घास की प्यारी।।


उगतीं बूटी -  जड़ी   घास में।

वन -औषधियाँ बढ़ें साथ में।।

करतीं जो निरोग  तन  सारी।

साड़ी हरी   घास की प्यारी।।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०७.२०२२◆११.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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