मंगलवार, 26 जुलाई 2022

दादुर -गान 🐸 [ बालगीत ]

 295/2022


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✍️शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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दादुर    रजनी    भर    टर्राते।

दादुरियों  को   पास  बुलाते।।


जब  से   गिरे   दोंगरे    भारी।

शुभ अषाढ़ की शीत फुहारी।

निकल धरा   से   बाहर आते।

दादुर    रजनी   भर   टर्राते।।


वीरबहूटी    लाल     गिजाई।

उड़े   पतंगे    दीमक    आई।।

रेंग   केंचुआ    थे     शरमाते।

दादुर   रजनी   भर    टर्राते।।


झींगुर की   झनकार  सुनाई।

देती,  कानों   को   प्रियताई।।

जुगनू   अपनी   टोर्च जलाते।

दादुर    रजनी  भर   टर्राते।।


टर्र -  टर्र   स्वर लगता प्यारा।

गूँज  उठा  सारा   गलियारा।।

तालाबों     में    मंत्र   सुनाते।

दादुर   रजनी    भर   टर्राते।।


भोर हुआ सर- तल पर अंडे।

शांत   भेक    सोए   मुस्टंडे।।

तापस   धूनी     मौन   रमाते।

दादुर  रजनी    भर    टर्राते।।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०७.२०२२◆१२.१५ पतनम् मार्तण्डस्य।

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