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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मानुष
मानुष है,
मानस के कारण,
मानसिक बल के कारण,
नहीं यदि यह बल
तो है तू भी
किसी पशु की तरह निर्बल।
मानसिक बल
मानव की पहचान,
उसके बिना है
शून्य हर ज्ञान,
तथ्य यह
गहनता से ले संज्ञान।
आयु के साथ बढ़ा
तेरा मानसिक बल,
शिशु से बालक
किशोर युवा प्रौढ़
और अंत में वयोवृद्ध,
बुद्धि की
चरम शक्ति से समृद्ध,
हिमालय के
शिखर का सिद्ध।
भले ही है
दैहिक बल क्षीण,
किंतु नहीं होना है
तुझे मन से हीन,
मानस है यदि
तेरा परिपुष्ट पीन,
क्यों समझता है
तू अपने को दीन,
मत हो मलीन,
यहीं पर तो
बजानी है तुझे
अपनी वीणा की बीन।
सोपान दर सोपान
चढ़ता रहा,
अपने उच्चतम
गंतव्य की ओर
बढ़ता रहा,
चरम शिखर है,
इसी से तो
तू मानुष है,
अब वनमानुष तो नहीं,
तेरा 'शुभम्' तो
तुझे मिलना है यहीं,
तू पशु है न कीट नहीं पक्षी
तू सर्वश्रेष्ठ मानुष है,
जी हाँ ,
तू जीव योनि में
सर्वश्रेष्ठ मानुष है।
🪴 शुभमस्तु!
०८.०७. २०२२◆६.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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