बुधवार, 27 जुलाई 2022

दिए ब्रह्म नौ द्वार 🪦 [कुंडलिया]

 

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✍️ शब्दकार©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

जीता   कोई  पेट को,कोई निज   परिवार।

रँगा जाति के रंग में,जुड़े जाति    से  तार।।

जुड़े  जाति  से तार,भेजता बिजली  पानी।

बना  कूप   मंडूक, बनाता   नई   कहानी।।

'शुभम्' यहीं तक देश, उसी में जीवन  बीता।

भेदभाव  में  लीन, नहीं मानव बन   जीता।।


                         -2-

मन की छोटी सोच की,क्षमता ज्यों खुर छाग

रहता बिल में और के,काला विषधर  नाग।।

काला  विषधर  नाग,देश  की भक्ति न जाने।

करे अन्न-आहार,  उचित विष -दंशन  माने।।

जीता  जैसे ढोर,मात्र चिंता निज  तन   की।

'शुभम्'करें पहचान,सोच जानें लघु मन की।


                         -3-

पाहन  को  हम पूजते,मान उसे   भगवान।

ईश्वर  भी साकार है,दे मानव यदि   ध्यान।।

दे मानव  यदि ध्यान,पिता- माता  भी मेरे।

गुरु भी  ब्रह्म स्वरूप,ज्ञान के कोष  घनेरे।।

'शुभम्'न सबसे मूढ़,मिलेगी उसे सु-राह न।

हो मन में  सद्भाव, तुझे  फल देंगे   पाहन।।


                         - 4 -

तेरे   तन  में   दे  दिए,  कर्ता ने  नौ   द्वार।

आनन अपना छोड़कर,क्यों न करेआहार?

क्यों न करे आहार,आँख या जाकर नीचे।

चल  हाथों   से  मूढ़, पैर से नीर    उलीचे।।

'शुभम्' कान से देख,नाक से श्वास न ले रे।

मुख से खुशबू सूँघ, उलट सब कराज तेरे।।


                          -5-

धाता  ने नर को दिए,विधिवत देह - विधान।

पालन  सबका  एक ही,सोहन या सलमान।।

सोहन  या  सलमान, उदर  में मुख से लेना।

चलें  राह  में  पैर, हाथ  से ही कुछ   देना।।

'शुभं'न विधि विपरीत,धरा में नर अपनाता।

फिर क्यों भेद-कुभेद, पालकर छोड़े धाता।।


🪴 शुभमस्तु !


२७.०७. २०२२◆६.३०पतनम मार्तण्डस्य।

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