गुरुवार, 7 जुलाई 2022

कर्मशील बनें 🤴 [ महाशृंगार छंद ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🧑‍🎓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कर्मशील          मानव       जो    होता,

उसे        नहीं         पछताना  पड़ता।

विपदा  में       वह    पड़ा    न    रोता,

चट्टानों          से        डटकर  अड़ता।।


परिजीवी           आलसी     चोर     हैं,

स्वेद       बहाना      उन्हें     न    आता।

विपदा       उनको       नित्य  घोर    हैं,

मात्र         बहाना          खूब  सुहाता।। 


पंख    निकलते      ही   खग -   शावक,

ऊपर          उड़ने      लग    जाते    हैं,

बन     जाते        हैं      बालक  धावक,

दौड़       लगाते      नित    भाते     हैं।।


चींटी         गिर - गिर      कर चढ़ती   है,

पर्वत            की      चोटी    पर   जाती।

नहीं         बहाना      वह    गढ़ती     है,

लक्ष्य   -  सिद्धि      कर   वापस  आती।।


मानव       हो     तो    कर्म    न   छोड़ो,

कदम         सफलता       नित   चूमेगी।

नहीं    शूल  -     पथ   पर  मुख   मोड़ो,

विजय       -   माल        ग्रीवा  झूमेगी।।


🪴 शुभमस्तु!


०७०.७.२०२२◆९.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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