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✍️ शब्दकार ©
🧑🎓 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कर्मशील मानव जो होता,
उसे नहीं पछताना पड़ता।
विपदा में वह पड़ा न रोता,
चट्टानों से डटकर अड़ता।।
परिजीवी आलसी चोर हैं,
स्वेद बहाना उन्हें न आता।
विपदा उनको नित्य घोर हैं,
मात्र बहाना खूब सुहाता।।
पंख निकलते ही खग - शावक,
ऊपर उड़ने लग जाते हैं,
बन जाते हैं बालक धावक,
दौड़ लगाते नित भाते हैं।।
चींटी गिर - गिर कर चढ़ती है,
पर्वत की चोटी पर जाती।
नहीं बहाना वह गढ़ती है,
लक्ष्य - सिद्धि कर वापस आती।।
मानव हो तो कर्म न छोड़ो,
कदम सफलता नित चूमेगी।
नहीं शूल - पथ पर मुख मोड़ो,
विजय - माल ग्रीवा झूमेगी।।
🪴 शुभमस्तु!
०७०.७.२०२२◆९.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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