296/2022
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✍️शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सावन में बागों ने गाया।
गीतों का सरगम मनभाया।।
प त- पत पीपल - पत्ते करते।
स र-सर कर फरास रस भरते।।
रिमझिम कर र साल हरषाया।
सावन में बागों ने गाया।।
गिलहरियाँ गि ल- गिल कर गातीं।
मधुमाखी म र - मर सुनवातीं।।
ध व तरु पतला पात लुभाया।
सावन में बागों ने गाया।।
नी बू , नीम मौन क्यों रहते।
गिरा निबौली नाचा करते।।
स हजन की है शीतल छाया।
सावन में बागों ने गाया।।
सेमल, जामुन , लता , चमेली।
लंबे बाँस सुमन की बेली।।
विटप आँवला भी सरसाया।
सावन में बागों ने गाया।।
हरी घास मखमल - सी प्यारी।
सुख देती पैरों को न्यारी।।
'शुभम्' कीर ने फल टपकाया।
सावन में बागों ने गाया।।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०७.२०२२◆०१.१५ पतनम् मार्तण्डस्य।
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