मंगलवार, 26 जुलाई 2022

बागों ने गाया! 🌳 [ बालगीत ]

 296/2022

     

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■


सावन    में     बागों   ने   गाया।

गीतों    का   सरगम   मनभाया।।


प त-  पत     पीपल - पत्ते करते।

स र-सर  कर  फरास रस भरते।।

रिमझिम   कर   र साल हरषाया।

सावन     में     बागों    ने   गाया।।


गिलहरियाँ  गि ल- गिल कर  गातीं।

मधुमाखी   म र   -  मर सुनवातीं।।

ध व     तरु   पतला  पात लुभाया।

सावन     में     बागों     ने   गाया।।


नी बू ,  नीम     मौन   क्यों  रहते।

गिरा     निबौली         नाचा  करते।।

स हजन   की    है   शीतल छाया।

सावन      में     बागों      ने गाया।।


सेमल,   जामुन ,     लता ,  चमेली।

लंबे    बाँस     सुमन    की  बेली।।

विटप     आँवला    भी  सरसाया।

सावन     में     बागों   ने  गाया।।


हरी    घास     मखमल - सी प्यारी।

सुख      देती       पैरों    को न्यारी।।

'शुभम्'    कीर   ने    फल टपकाया।

सावन    में     बागों     ने   गाया।।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०७.२०२२◆०१.१५ पतनम् मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...