गुरुवार, 14 जुलाई 2022

सावन की बहार 🌈 [ दोहा ]

 

[कजरी,तीज,चूड़ी,मेंहदी,झूला]

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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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    🌳 सब में एक 🌳

सजनी सावन आ गया,गाएँ कजरी गीत।

झूला झूलें  आम्र  तरु, हर्षाये मन - मीत।।

कजरी देवी से कहे,सजन जिएँ सौ साल।

हे  माँ  तेरे  द्वार  पर,  नाचूँ  दे -  दे  ताल।।


उमा उमापति मैं करूँ,निर्जल व्रत हैं तीज।

जैसे पति तुमको मिले,पाऊँ धरणि सु-बीज।

तीज पर्व  आया  सखी, गाएँ कजरी आज।

पूजें  शिव- माता उमा,पूजा में क्या लाज!!


चूड़ी लाल  सुहाग की,पहन कलाई   हाथ।

वंदन सधवा कर रहीं ,रहें पिया नित  साथ।।

चूड़ी  शुभ   शृंगार  है,नारी के  शुभ   हेत।

पैरों  में  पायल  बजे, कर चूड़ी  समवेत।।


घिस पत्थर पर मेहँदी,देती रँग  शुभ  लाल।

सुंदर  प्रेम  प्रतीक ये,करता सदा   कमाल।।

गर्मी तन  की खींचकर,देती अति    आराम।

कर पग की शोभा बढ़े, मेहँदी सुघर सुकाम।


सावन  में झूला  कहाँ, शेष बचा  है  नाम।

मन  का झूला झूलिए,मिलता है    आराम।।

चलें  सखी  हम बाग में,झूलें झूला    आज।

सावन  का प्रिय मास है, आएँगे  सरताज।।


    🌳 एक में सब  🌳

झूला, कजरी, तीज का,

                      आया   शुभ संयोग।

सावन के शुभ मास में,

                   चूड़ी    मेहँदी   भोग।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०७.२०२२◆६.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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