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✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जो हो रहा है
वही सही है,
कोई भी विरोध
उचित नहीं है,
पकड़े रहें
भेड़ की पूँछ,
अन्यथा कट जाएगी
तुम्हारी मूँछ,
बस किए हुए
अपने नयन बंद,
करते रहें अनुगमन
स्वछंद !
सूँघते रहें
गुबरैला बन
गोबर की गंध।
मत उड़ाना उपहास
कभी गलत परम्पराओं का,
ठहरा दिए जाओगे
विरोधी अवांछित,
इसलिए हिलना भी नहीं
अपने मार्ग से किंचित,
कर दिए जाओगे
समाज से वंचित,
अरे मीत!
तुम्हें सोचने की भी
आवश्यकता ही क्या है?
जो हो रहा है
उसमें तुम्हारी
हानि भी क्या है ?
बस पूँछ को
मत छोड़ना,
भूलकर भी
उचित की ओर
कदम मत मोड़ना।
जीने नहीं देगा तुम्हें
ये समाज ,
विचारों से
बने रहें बाँझ,
पीछा नहीं छोड़ेगी
तुम्हारा रूढ़िवादी खाज,
जैसे कल थे
वैसे ही बने रहो आज,
मस्तिष्क पर
बल देने की
कोई आवश्यकता
नहीं है,
जो हो रहा है
वही सही है।
समाज के नाम पर
धर्म के नाम पर
गुबरैला बनने में ही
कुशल है तुम्हारी,
नहीं तो लग जाएगी
अफलातून बनने की
आधुनिक बीमारी,
जिसका कहीं कोई
चिकित्सक नहीं है,
इसलिए भेड़
बने रहना ही सही है।
यहाँ भेड़, गर्दभ
और बैलों का
बड़ा सम्मान है,
ऐसों के ही गले में
पुष्पों का हार
औऱ विराजने को
'पुष्पक' विमान है!
तब ही तुम्हारा
समाज पर
होना बड़ा अहसान है।
कहीं कोई नया विचार
लाना निर्रथक है,
'शुभम्' भेड़ाचार ही
उचित है,
क्योंकि यह
तुम्हारी विरासत है!
इसके विपरीत
साँसों में साँसत है।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०७.२०२२◆३.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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