■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🚣🏻♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
सोना उनको टंच चाहिए।
ऊँचा ही हर मंच चाहिए।।
उदर भरा हो फिर भी अपना,
अति से भी अपरंच चाहिए।
माने नहीं आम अपने को,
होना ही सरपंच चाहिए।
अपराधों का बोझ उठाएँ,
नहीं कभी पद रंच चाहिए।
रिश्वत लें रिश्वत दे छूटें,
गुरु गुरूर गुनवन्त चाहिए।
रँगे वसन की शान दिखाए,
राजनीति का संत चाहिए।
'शुभम्' भाव को मूर्त बनाए,
पृष्ठ धरातल संच चाहिए।
*संच = स्याही।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०७.२०२२◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें