रविवार, 17 जुलाई 2022

उद्गाता कवि भाव का 🌅 [ दोहा गीतिका ]

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

भावलोक व्यापक बड़ाभ्रमण करें कवि मीत

कविता  कोई   कर  रहा, गाता कोई   गीत।।


भाव  उच्च - आचार  के,दुर्लभ  शूकर  श्वान,

जो  उतरे  निधि - नीर में,लेता मुक्ता   जीत।


देश भाव जिसमें नहीं, मनुज नहीं वह  नेक,

भरता पशुवत पेट ही,भाव कटुक  विपरीत।


उद्गाता कवि भाव का,जनहित उसके  प्राण,

भावी है उज्ज्वल सदा,उज्ज्वल रहा अतीत।


जिसके  उर में जल रही, वैमनस्य  की आग,

धरा  मरुस्थल  की  वहाँ, शेष नहीं  है  तीत।


ऊर्जा तन- मन की नहीं,करना तुम  बरबाद,

उपकारी बन मानुसो,बन जा अमल अभीत।


'शुभम्'भाव मन के रहें, प्रतिपल ही परिशुद्ध,

धर  मानव की  देह को,होगा शुभद   प्रतीत।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०७.२०२२◆३.३०

पतनम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...